Health Insurance Portability: Complete Guide for 2025

Robin Talks Finance

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हेल्थ इंश्योरेंस आज के समय में हर किसी की जरूरत है। लेकिन क्या आप अपनी मौजूदा हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी से खुश हैं? अगर नहीं, तो Health Insurance Portability (हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी) आपके लिए एक शानदार विकल्प हो सकता है। यह आपको अपनी पुरानी इंश्योरेंस कंपनी को छोड़कर नई कंपनी में शिफ्ट करने की सुविधा देता है, वो भी बिना पुराने बेनिफिट्स खोए। इस ब्लॉग पोस्ट में हम हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी के बारे में सब कुछ विस्तार से समझेंगे—यह क्या है, इसके फायदे और नुकसान, प्रक्रिया, और वो जरूरी बातें जो आपको ध्यान रखनी चाहिए। तो चलिए, शुरू करते हैं!


Health Insurance Portability: Complete Guide for 2025


Health Insurance Portability (हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी क्या है?)

हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी का मतलब है अपनी मौजूदा हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को एक इंश्योरेंस कंपनी से दूसरी कंपनी में ट्रांसफर करना। इसमें आपकी पॉलिसी के पुराने बेनिफिट्स, जैसे वेटिंग पीरियड और प्री-एक्सिस्टिंग कंडीशंस, नई कंपनी में ट्रांसफर हो जाते हैं। इसे समझने के लिए एक आसान उदाहरण लेते हैं:

  • मान लीजिए, आप अपने मोबाइल नंबर को एक सर्विस प्रोवाइडर (जैसे Airtel) से दूसरे (जैसे Jio) में ट्रांसफर करते हैं। आपका नंबर वही रहता है, लेकिन सर्विस प्रोवाइडर बदल जाता है। ठीक उसी तरह, हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी में आपकी पॉलिसी का सम एश्योर्ड (कवरेज राशि) और बेनिफिट्स नई कंपनी में चले जाते हैं।

लेकिन पोर्टेबिलिटी और माइग्रेशन में अंतर है। माइग्रेशन का मतलब है उसी इंश्योरेंस कंपनी के अंदर एक प्लान से दूसरे प्लान में शिफ्ट करना। उदाहरण के लिए, अगर आपकी मौजूदा कंपनी का कोई नया प्लान बेहतर फीचर्स देता है, तो आप उसी कंपनी में नया प्लान ले सकते हैं—यह माइग्रेशन है। लेकिन अगर आप कंपनी ही बदलना चाहते हैं, तो यह पोर्टेबिलिटी होगी।

पोर्टेबिलिटी कब और क्यों करनी चाहिए?

पोर्टेबिलिटी का फैसला तब लेना चाहिए जब आप अपनी मौजूदा इंश्योरेंस कंपनी या प्लान से संतुष्ट न हों। कुछ आम कारण हैं:

  • बेहतर सर्विस की तलाश: अगर आपकी मौजूदा कंपनी का क्लेम सेटलमेंट रेशियो कम है या सर्विस खराब है।

  • अपग्रेडेड फीचर्स: नई कंपनी में बेहतर फीचर्स जैसे OPD कवर, आयुष ट्रीटमेंट, या मॉडर्न ट्रीटमेंट्स का कवरेज मिल रहा हो।

  • कम प्रीमियम: अगर दूसरी कंपनी में वही कवरेज कम प्रीमियम में मिल रहा हो।

  • पुरानी पॉलिसी अपडेटेड नहीं: अगर आपकी पॉलिसी 20-25 साल पुरानी है और आज की मेडिकल जरूरतों (जैसे रोबोटिक सर्जरी) को कवर नहीं करती।

उदाहरण: मान लीजिए, रमेश जी ने 10 साल पहले 5 लाख की हेल्थ पॉलिसी ली थी। अब उन्हें लगता है कि उनकी कंपनी का क्लेम प्रोसेस धीमा है और नई कंपनी में 5 लाख का कवरेज कम प्रीमियम में मिल रहा है, जिसमें OPD और आयुष ट्रीटमेंट भी शामिल हैं। ऐसे में रमेश जी पोर्टेबिलिटी चुन सकते हैं।

पोर्टेबिलिटी के फायदे

हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी के कई फायदे हैं, जो आपकी फाइनेंशियल हेल्थ को बेहतर बना सकते हैं:

  • बेहतर सर्विस और क्लेम एक्सपीरियंस: नई कंपनी में तेज क्लेम सेटलमेंट और बेहतर कस्टमर सपोर्ट मिल सकता है।

  • अपग्रेडेड फीचर्स: नई पॉलिसी में मॉडर्न ट्रीटमेंट्स (जैसे लेजर सर्जरी), आयुष ट्रीटमेंट, या OPD कवरेज जैसे फीचर्स हो सकते हैं।

  • वेटिंग पीरियड का ट्रांसफर: अगर आपने अपनी पुरानी पॉलिसी में प्री-एक्सिस्टिंग कंडीशंस (जैसे डायबिटीज) या स्लो-ग्रोइंग बीमारियों (जैसे कैटरेक्ट, हर्निया) के लिए वेटिंग पीरियड पूरा कर लिया है, तो यह नई कंपनी में कैरी फॉरवर्ड हो जाएगा। यानी आपको दोबारा वेटिंग पीरियड शुरू नहीं करना पड़ेगा।

  • कम प्रीमियम की संभावना: कई बार नई कंपनी बेहतर फीचर्स के साथ कम प्रीमियम ऑफर करती है।

उदाहरण: शालिनी की पॉलिसी 5 साल पुरानी है, और उन्होंने डायबिटीज के लिए 3 साल का वेटिंग पीरियड पूरा कर लिया है। नई कंपनी में पोर्ट करने पर यह वेटिंग पीरियड दोबारा शुरू नहीं होगा, और वे पहले दिन से डायबिटीज से जुड़े क्लेम के लिए कवर होंगी।

पोर्टेबिलिटी के नुकसान

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। पोर्टेबिलिटी के कुछ नुकसान भी हैं:

  • अंडरराइटिंग रिस्क: नई कंपनी आपकी मेडिकल हिस्ट्री, लाइफस्टाइल (जैसे स्मोकिंग), और क्लेम हिस्ट्री की जांच करेगी। अगर आपकी मेडिकल कंडीशन रिस्की है, तो पॉलिसी रिजेक्ट भी हो सकती है।

  • ज्यादा प्रीमियम: बेहतर फीचर्स या हाई क्लेम सेटलमेंट रेशियो वाली कंपनी में प्रीमियम ज्यादा हो सकता है।

  • मिड-टर्म पोर्टिंग नहीं: पोर्टेबिलिटी केवल पॉलिसी रिन्यूअल के समय (45 दिन पहले) ही हो सकती है, बीच में नहीं।

  • नो-क्लेम बोनस का नुकसान: अगर आपकी पुरानी पॉलिसी में नो-क्लेम बोनस (NCB) के कारण सम एश्योर्ड बढ़ गया है (जैसे 10 लाख से 15 लाख), तो नई कंपनी में केवल मूल सम एश्योर्ड (10 लाख) ही ट्रांसफर होगा।

उदाहरण: अजय की 10 लाख की पॉलिसी पर 5 लाख का नो-क्लेम बोनस है। नई कंपनी में पोर्ट करने पर केवल 10 लाख का सम एश्योर्ड ट्रांसफर होगा, 5 लाख का बोनस नहीं।

पोर्टेबिलिटी की प्रक्रिया: स्टेप-बाय-स्टेप गाइड

हेल्थ इंश्योरेंस पोर्ट करना जटिल लग सकता है, लेकिन सही जानकारी के साथ यह आसान है। यहाँ स्टेप्स हैं:

  1. रिन्यूअल से 45 दिन पहले प्लान करें: पोर्टेबिलिटी केवल पॉलिसी रिन्यूअल के समय हो सकती है। इसलिए, रिन्यूअल डेट से कम से कम 45 दिन पहले प्रक्रिया शुरू करें।

  2. नई कंपनी से संपर्क करें: जिस कंपनी में आप पोर्ट करना चाहते हैं, उनके कस्टमर केयर या एजेंट से बात करें। उदाहरण के लिए, अगर आप कंपनी A से कंपनी B में जाना चाहते हैं, तो कंपनी B को अपनी मौजूदा पॉलिसी की डिटेल्स दें।

  3. पुरानी पॉलिसी की कॉपी जमा करें: अपनी मौजूदा पॉलिसी की कॉपी (3-4 साल पुरानी भी हो सकती है) नई कंपनी को दें, ताकि वे निरंतरता (continuity) चेक कर सकें।

  4. नया प्रपोजल फॉर्म भरें: नई कंपनी में आपको एक नया प्रपोजल फॉर्म भरना होगा, जिसमें आपकी वर्तमान मेडिकल हिस्ट्री और लाइफस्टाइल की जानकारी देनी होगी।

  5. अंडरराइटिंग प्रक्रिया: नई कंपनी आपकी मेडिकल हिस्ट्री, क्लेम हिस्ट्री, और लाइफस्टाइल की जांच करेगी। इसके आधार पर वे पॉलिसी अप्रूव या रिजेक्ट करेंगे।

  6. पॉलिसी डॉक्यूमेंट चेक करें: पॉलिसी मिलने के बाद, डॉक्यूमेंट में चेक करें कि पुरानी पॉलिसी की इनसेप्शन डेट (शुरुआत की तारीख, जैसे 2019) और पोर्टेड बेनिफिट्स सही हैं या नहीं।

  7. फ्री-लुक पीरियड का उपयोग: अगर आप नई पॉलिसी से संतुष्ट नहीं हैं, तो 30 दिन के फ्री-लुक पीरियड में पॉलिसी कैंसिल कर सकते हैं और पूरा रिफंड पा सकते हैं।

उदाहरण: प्रिया ने कंपनी A की पॉलिसी, जो 2018 से चल रही थी, को 2025 में कंपनी B में पोर्ट किया। उन्होंने 45 दिन पहले कंपनी B से संपर्क किया, पुरानी पॉलिसी की कॉपी दी, और नया प्रपोजल फॉर्म भरा। कंपनी B ने उनकी मेडिकल हिस्ट्री चेक की और पॉलिसी अप्रूव कर दी। प्रिया ने पॉलिसी डॉक्यूमेंट में चेक किया कि 2018 की इनसेप्शन डेट सही है।

पोर्टेबिलिटी के समय ध्यान रखने योग्य बातें

पोर्टेबिलिटी करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है, ताकि आपकी प्रक्रिया आसान और सुरक्षित हो:

  • मेडिकल हिस्ट्री पूरी तरह बताएं: नई कंपनी पुरानी कंपनी से आपकी मेडिकल हिस्ट्री नहीं लेगी। आपको अपनी वर्तमान मेडिकल कंडीशंस (जैसे डायबिटीज, BP) और लाइफस्टाइल (जैसे स्मोकिंग) की पूरी जानकारी देनी होगी। अगर आप कुछ छुपाते हैं, तो क्लेम रिजेक्ट हो सकता है।

  • क्लेम हिस्ट्री डिस्क्लोज करें: अगर आपने पुरानी पॉलिसी में कोई क्लेम लिया है, तो उसे जरूर बताएं। उदाहरण के लिए, अगर आपने 2 साल पहले हॉस्पिटलाइजेशन के लिए क्लेम किया था, तो यह जानकारी नई कंपनी को दें।

  • पॉलिसी डॉक्यूमेंट अच्छे से पढ़ें: नई पॉलिसी मिलने के बाद, चेक करें कि पुरानी पॉलिसी की इनसेप्शन डेट और वेटिंग पीरियड सही तरीके से ट्रांसफर हुए हैं या नहीं।

  • फ्री-लुक पीरियड का फायदा उठाएं: अगर पॉलिसी में कोई गलती है या आप संतुष्ट नहीं हैं, तो 30 दिन के फ्री-लुक पीरियड में कैंसिल करें।

उदाहरण: राहुल ने पोर्टेबिलिटी के दौरान अपनी पुरानी हार्ट सर्जरी की जानकारी नहीं दी। बाद में जब उन्होंने क्लेम फाइल किया, तो कंपनी ने क्लेम रिजेक्ट कर दिया, क्योंकि यह जानकारी छुपाई गई थी। इसलिए, हमेशा पूरी और सही जानकारी दें।

पोर्टेबिलिटी बनाम माइग्रेशन: क्या चुनें?

जैसा कि हमने पहले समझा, पोर्टेबिलिटी और माइग्रेशन में अंतर है। यहाँ दोनों की तुलना है:

  • पोर्टेबिलिटी:

    • नई कंपनी में शिफ्ट करना।

    • ज्यादा समय और अंडरराइटिंग रिस्क।

    • नो-क्लेम बोनस ट्रांसफर नहीं होता।

    • उपयुक्त जब आप कंपनी की सर्विस या फीचर्स से असंतुष्ट हों।

  • माइग्रेशन:

    • उसी कंपनी में नया प्लान लेना।

    • कम समय और कम अंडरराइटिंग रिस्क।

    • नो-क्लेम बोनस आमतौर पर ट्रांसफर होता है।

    • उपयुक्त जब आप कंपनी से खुश हैं, लेकिन बेहतर प्लान चाहते हैं।

उदाहरण: अगर अनीता को उनकी कंपनी का क्लेम प्रोसेस पसंद है, लेकिन वे OPD कवर चाहती हैं जो उनकी मौजूदा पॉलिसी में नहीं है, तो वे माइग्रेशन चुन सकती हैं। लेकिन अगर वे कंपनी की सर्विस से ही नाखुश हैं, तो पोर्टेबिलिटी बेहतर होगी।

जरूरी इंश्योरेंस टर्म्स की व्याख्या

हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी को समझने के लिए कुछ टर्म्स को विस्तार से जानना जरूरी है:

  • सम एश्योर्ड: यह वह राशि है जो आपकी पॉलिसी कवर करती है। उदाहरण के लिए, 10 लाख का सम एश्योर्ड मतलब हॉस्पिटलाइजेशन के लिए 10 लाख तक का खर्च कवर होगा।

  • प्री-एक्सिस्टिंग कंडीशंस (PED): ऐसी बीमारियां जो पॉलिसी लेने से पहले से हैं, जैसे डायबिटीज या हाइपरटेंशन। इनके लिए आमतौर पर 2-4 साल का वेटिंग पीरियड होता है।

  • स्लो-ग्रोइंग इलनेस: ऐसी बीमारियां जो धीरे-धीरे बढ़ती हैं, जैसे कैटरेक्ट, हर्निया, पाइल्स, या नी रिप्लेसमेंट। इनके लिए भी वेटिंग पीरियड होता है।

  • नो-क्लेम बोनस (NCB): अगर आप एक साल में क्लेम नहीं लेते, तो कंपनी आपको बोनस देती है, जैसे सम एश्योर्ड में बढ़ोतरी (10 लाख से 12 लाख)।

  • अंडरराइटिंग: इंश्योरेंस कंपनी की प्रक्रिया, जिसमें वे आपकी मेडिकल हिस्ट्री, लाइफस्टाइल, और क्लेम हिस्ट्री की जांच करती है ताकि रिस्क का आकलन कर सकें।

  • फ्री-लुक पीरियड: पॉलिसी मिलने के बाद 30 दिन का समय, जिसमें आप पॉलिसी चेक कर सकते हैं और असंतुष्ट होने पर कैंसिल कर सकते हैं।

  • क्लेम सेटलमेंट रेशियो: यह दर्शाता है कि कंपनी कितने प्रतिशत क्लेम्स को अप्रूव करती है। ज्यादा रेशियो बेहतर कंपनी का संकेत है।


Avoid These 5 Big Mistakes While Buying Health Insurance in 2025

अपने लिए सही पॉलिसी चुनें

पोर्टेबिलिटी का फैसला लेने से पहले अपनी जरूरतों को समझें। क्या आप कम प्रीमियम चाहते हैं? बेहतर फीचर्स चाहिए? या तेज क्लेम प्रोसेस? नई कंपनी चुनते समय इन बातों का ध्यान रखें:

  • कंपनी का क्लेम सेटलमेंट रेशियो चेक करें।

  • पॉलिसी में शामिल फीचर्स, जैसे OPD, आयुष, या मॉडर्न ट्रीटमेंट्स, देखें।

  • प्रीमियम और कवरेज की तुलना करें।

  • सुनिश्चित करें कि आपकी मेडिकल हिस्ट्री नई कंपनी के लिए स्वीकार्य है।

कॉल-टू-एक्शन: क्या आप अपनी मौजूदा हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी से खुश नहीं हैं? आज ही पोर्टेबिलिटी के विकल्प तलाशें! अपनी जरूरतों के हिसाब से नई कंपनी चुनें और अपनी फाइनेंशियल हेल्थ को मजबूत करें। अधिक जानकारी के लिए हमारी दूसरी ब्लॉग पोस्ट्स पढ़ें, जैसे “हेल्थ इंश्योरेंस खरीदने से पहले और बाद में ध्यान देने योग्य बातें”।

SOURCE:- HDFC ERGO


🌐 हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

📌 प्रश्न 1: हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी क्या है?

🔹 उत्तर: हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी का मतलब है अपनी मौजूदा हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को एक कंपनी से दूसरी कंपनी में ट्रांसफर करना। इसमें आपके पुराने बेनिफिट्स (जैसे वेटिंग पीरियड, प्री-एक्सिस्टिंग डिजीज कवरेज) भी साथ में ट्रांसफर हो जाते हैं।

📌 प्रश्न 2: माइग्रेशन और पोर्टेबिलिटी में क्या फर्क है?

🔹 उत्तर:

पोर्टेबिलिटी 👉 जब पॉलिसी को पूरी तरह नई इंश्योरेंस कंपनी में शिफ्ट किया जाता है।

माइग्रेशन 👉 जब उसी कंपनी के एक प्लान से दूसरे प्लान में बदलाव किया जाता है।

✍️ सरल शब्दों में: कंपनी बदलना = पोर्टेबिलिटी, प्लान बदलना = माइग्रेशन।

📌 प्रश्न 3: पोर्टेबिलिटी कब करनी चाहिए?

🔹 उत्तर: जब आप अपनी मौजूदा कंपनी की सर्विस या फीचर्स से संतुष्ट नहीं हैं।

👉 उदाहरण:

कम क्लेम सेटलमेंट रेशियो।

नई कंपनी में मॉडर्न ट्रीटमेंट, OPD, या आयुष कवरेज मिल रहा हो।

कम प्रीमियम में वही कवरेज मिल रहा हो।

📌 प्रश्न 4: हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी के फायदे क्या हैं?

🔹 उत्तर:

✅ बेहतर क्लेम सेटलमेंट रेशियो और कस्टमर सर्विस।

✅ नई कंपनी में अपग्रेडेड फीचर्स (OPD, आयुष ट्रीटमेंट आदि)।

✅ पुराना वेटिंग पीरियड कैरी फ़ॉरवर्ड हो जाता है।

✅ कम प्रीमियम देने का विकल्प।

📌 प्रश्न 5: हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी के नुकसान क्या हैं?

🔹 उत्तर:

⚠️ नई कंपनी आपकी मेडिकल हिस्ट्री देखकर पॉलिसी रिजेक्ट कर सकती है।

⚠️ बेहतर फीचर्स वाली कंपनी में प्रीमियम ज्यादा हो सकता है।

⚠️ पोर्टिंग केवल पॉलिसी रिन्यूअल के समय (45 दिन पहले) ही की जा सकती है।

⚠️ नो-क्लेम बोनस (NCB) ट्रांसफर नहीं होता।

📌 प्रश्न 6: हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी की प्रक्रिया क्या है?

🔹 उत्तर (स्टेप-बाय-स्टेप):

1️⃣ पॉलिसी रिन्यूअल से 45 दिन पहले नई कंपनी से संपर्क करें।

2️⃣ मौजूदा पॉलिसी की कॉपी नई कंपनी को दें।

3️⃣ नया प्रपोजल फॉर्म भरें।

4️⃣ अंडरराइटिंग प्रक्रिया (मेडिकल हिस्ट्री, क्लेम हिस्ट्री आदि चेक की जाएगी)।

5️⃣ पॉलिसी डॉक्यूमेंट चेक करें (पुरानी इनसेप्शन डेट व बेनिफिट्स सही हों)।

6️⃣ अगर संतुष्ट न हों तो 30 दिन के फ्री-लुक पीरियड में पॉलिसी कैंसिल कर सकते हैं।

📌 प्रश्न 7: पोर्टेबिलिटी करते समय किन बातों का खास ध्यान रखना चाहिए?

🔹 उत्तर:

🔑 अपनी मेडिकल हिस्ट्री और क्लेम हिस्ट्री बिल्कुल साफ-साफ बताएं।

🔑 नई कंपनी के पॉलिसी डॉक्यूमेंट को अच्छे से पढ़ें।

🔑 क्लेम सेटलमेंट रेशियो और कवरेज फीचर्स की तुलना जरूर करें।

🔑 फ्री-लुक पीरियड का फायदा उठाना न भूलें।

✨📌 नोट (Special Highlight):

हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी करने से पहले अपनी जरूरतों और मेडिकल हिस्ट्री को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है। सही प्लान और सही कंपनी चुनने से ही आपकी फाइनेंशियल हेल्थ सुरक्षित रहेगी। Health Insurance Portability Quiz

📝 हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी क्विज़

Score: 0 / X

1. हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी का मुख्य अर्थ क्या है?

नई कंपनी में पॉलिसी ट्रांसफर करना
पॉलिसी कैंसिल करना
प्रेमियम भूल जाना
क्लेम रिजेक्ट कराना

2. हेल्थ इंश्योरेंस माइग्रेशन का मतलब क्या है?

उसी कंपनी में एक प्लान से दूसरे में शिफ्ट होना
नई कंपनी में जाना
कार इंश्योरेंस जोड़ना
पॉलिसी खत्म करना

3. पोर्टेबिलिटी कब की जा सकती है?

पॉलिसी रिन्यूअल से कम से कम 45 दिन पहले
जब चाहे बीच में
पॉलिसी लेने के पहले महीने में
केवल क्लेम के बाद

4. हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी का एक फायदा क्या है?

पुराना वेटिंग पीरियड ट्रांसफर होना
हमेशा मुफ्त उपचार होना
प्रीमियम स्थाई रूप से कम होना
सभी बीमारियों के लिए तुरंत क्लेम

5. पोर्टेबिलिटी का एक नुकसान क्या है?

नो-क्लेम बोनस ट्रांसफर नहीं होना
बेहतर फीचर्स मिलना
बेहतर सर्विस मिलना
प्रीमियम हमेशा घट जाना

6. पोर्टेबिलिटी की प्रक्रिया में कौन सा स्टेप शामिल है?

नया प्रपोजल फॉर्म भरना
कंपनी के शेयर खरीदना
पॉलिसी डॉक्यूमेंट छुपाना
Agent से पूछना

7. फ्री-लुक पीरियड कितने दिनों का होता है?

30 दिन
7 दिन
15 दिन
60 दिन

8. कौन-सा कारण पोर्टेबिलिटी चुनने का हो सकता है?

दूसरी कंपनी में कम प्रीमियम और बेहतर कवरेज
नया बैंक अकाउंट खोलना
लाइफ इंश्योरेंस जोड़ना
कार इंश्योरेंस से जुड़ना

9. क्लेम सेटलमेंट रेशियो क्या दर्शाता है?

कितने प्रतिशत क्लेम कंपनी ने अप्रूव किए
कंपनी का मुनाफा
प्रीमियम की राशि
वेटिंग पीरियड की लंबाई

10. मेडिकल हिस्ट्री छुपाने पर क्या हो सकता है?

क्लेम रिजेक्ट हो सकता है
प्रीमियम घट सकता है
जल्दी क्लेम मिलना
फ्री ट्रीटमेंट



डिस्क्लेमर

यह ब्लॉग पोस्ट केवल सामान्य जानकारी के लिए है और इसे वित्तीय सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने या पोर्ट करने से पहले, अपने फाइनेंशियल एडवाइजर से सलाह लें। इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स और उनकी शर्तें कंपनी-दर-कंपनी बदल सकती हैं। हमेशा पॉलिसी डॉक्यूमेंट को ध्यान से पढ़ें और अपनी मेडिकल हिस्ट्री पूरी तरह डिस्क्लोज करें। 

ABOUT THE AUTHOR

Robin Singh is a personal finance enthusiast with 5 years of experience in stock markets, loans, and insurance. Through Robin Talks Finance, he shares practical tips to help Indians make informed financial decisions. His insights come from hands-on experience and research from trusted sources like SEBI and RBI. Disclaimer: This content is for informational purposes only, not financial advice. Contact: inquiryrobinsingh@gmail.com

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